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त्रिकोणीय टकराव: रामनगर निकाय चुनाव में निर्दलीय और बागी उम्मीदवारों की बढ़ती चुनौती

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त्रिकोणीय टकराव: रामनगर निकाय चुनाव में निर्दलीय और बागी उम्मीदवारों की बढ़ती चुनौती

रोशनी पांडे  – प्रधान संपादक

रामनगर। इस बार का निकाय चुनाव रामनगर के राजनीतिक इतिहास में नया अध्याय जोड़ने जा रहा है। गुनगुनी सर्दी के बीच यहां का माहौल चुनावी गर्मी से तप रहा है। प्रचार अभियान जोरों पर है, और हर गली-मोहल्ले में चर्चा का केंद्र है – कौन बनेगा अगला नगरपालिका अध्यक्ष?

त्रिकोणीय मुकाबले में फंसा समीकरण

चुनावी मुकाबला इस बार बेहद पेचीदा और अप्रत्याशित हो गया है। मैदान में निर्दलीय भुवन पांडे, भाजपा के बागी उम्मीदवार नरेंद्र शर्मा, और हाजी अकरम खान तीन बड़े दावेदार हैं। तीनों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला बनता दिख रहा है, जिसमें हर उम्मीदवार अपनी रणनीति और प्रभाव से जीत की उम्मीद कर रहा है।

भुवन पांडे: निर्दलीय लेकिन दमदार

निर्दलीय भुवन पांडे ने चुनाव को नए आयाम दे दिए हैं। पूर्व विधायक रणजीत रावत जैसे राजनैतिक दिग्गज का साथ और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का समर्थन उनकी ताकत को कई गुना बढ़ा रहा है। भुवन पांडे अपने प्रचार अभियान में विकास के मुद्दों पर जोर दे रहे हैं। उनका कहना है, “रामनगर को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं, स्वच्छ वातावरण और बुनियादी सुविधाओं की जरूरत है। अगर जनता ने मौका दिया तो मैं हर समस्या का समाधान तीन महीने के भीतर कर दूंगा।”

भुवन पांडे का प्रभाव पर्वतीय मतदाताओं पर खासा दिखाई दे रहा है। उनकी रणनीति और प्रचार अभियान ने उन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में मजबूत दावेदार बना दिया है।

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नरेंद्र शर्मा: भाजपा के बागी लेकिन मजबूत आधार

भाजपा के बागी उम्मीदवार नरेंद्र शर्मा अपने कट्टर हिंदूवादी छवि और युवाओं में लोकप्रियता के कारण सुर्खियों में हैं। पार्टी से बगावत के बावजूद, उनके साथ भाजपा के कई मजबूत कार्यकर्ता खड़े हैं। शर्मा अपने प्रचार में हिंदू संगठनों के समर्थन और अपनी योजनाओं को मुख्य मुद्दा बना रहे हैं। उनका कहना है, “रामनगर को एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत है, और मैं जनता की हर उम्मीद पर खरा उतरूंगा।”

नरेंद्र शर्मा की लोकप्रियता युवाओं के बीच काफी ज्यादा है, और वे हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में सफल दिख रहे हैं।

हाजी अकरम खान: मुस्लिम मतदाता पर पकड़ लेकिन चुनौतियां बरकरार

हाजी अकरम खान, जो पहले भी इस पद पर रह चुके हैं, मुस्लिम मतदाताओं के बीच मजबूत पकड़ रखते हैं। हालांकि, इस बार का चुनाव उनके लिए उतना आसान नहीं है। कांग्रेस का स्थानीय संगठन उन्हें समर्थन देने के बजाय भुवन पांडे के पक्ष में काम कर रहा है, जिससे हिंदू मतदाता उनके खिलाफ जा सकते हैं।

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इसके अलावा, निर्दलीय आसिफ इकबाल और आदिल की मौजूदगी मुस्लिम मतदाताओं में सेंध लगा रही है। फिर भी, अकरम खान का अनुभव और समुदाय में पुराना समर्थन उनके पक्ष में मजबूत बिंदु हैं।

राजनीतिक समीकरण: कौन किसके साथ?

रामनगर में इस बार का चुनाव सिर्फ उम्मीदवारों की ताकत पर नहीं, बल्कि गठबंधन और समर्थन के समीकरणों पर भी निर्भर है।

  • भुवन पांडे को कांग्रेस के सांगठनिक कार्यकर्ताओं का समर्थन मिल रहा है।
  • नरेंद्र शर्मा भाजपा के बागी होने के बावजूद पार्टी के कई कार्यकर्ताओं और हिंदू संगठनों का समर्थन पाने में कामयाब रहे हैं।
  • हाजी अकरम खान पर मुस्लिम मतदाताओं का विश्वास अब भी कायम है, लेकिन अन्य मुस्लिम उम्मीदवार उनकी राह में रोड़ा बन सकते हैं।

विकास बनाम पहचान की राजनीति

रामनगर के मतदाताओं के सामने विकास और पहचान की राजनीति के बीच चयन का सवाल है। जहां भुवन पांडे और नरेंद्र शर्मा विकास के मुद्दों पर जोर दे रहे हैं, वहीं हाजी अकरम खान समुदाय आधारित राजनीति पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

माहौल और मतदाताओं की सोच

रामनगर की गलियों और बाजारों में इस बार चुनाव को लेकर चर्चा तेज है। स्थानीय लोग उम्मीदवारों की योजनाओं और उनकी पिछली उपलब्धियों का विश्लेषण कर रहे हैं।

  • मुस्लिम मतदाता अभी तक हाजी अकरम के पक्ष में झुके हुए हैं, लेकिन युवा मतदाता भुवन पांडे और नरेंद्र शर्मा की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं।
  • पर्वतीय मतदाता भुवन पांडे को एक संभावित विकल्प के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि उनके अभियान में स्थानीय समस्याओं का समाधान और विकास की योजनाएं शामिल हैं।
  • हिंदू मतदाता नरेंद्र शर्मा के पक्ष में एकजुट होते नजर आ रहे हैं, जिनकी छवि कट्टर और युवाओं में लोकप्रिय है।
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चुनावी परिणाम: अंतिम दौड़ में कौन?

चुनाव विश्लेषकों की मानें तो यह लड़ाई अंततः भुवन पांडे और नरेंद्र शर्मा के बीच सिमट सकती है। हालांकि, हाजी अकरम खान अभी भी मुकाबले में हैं, और यदि उन्होंने मुस्लिम वोटों को एकजुट रखने में कामयाबी हासिल की, तो वे बड़ा उलटफेर कर सकते हैं।

रामनगर का यह चुनाव न सिर्फ स्थानीय राजनीति, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समीकरणों को भी नया स्वरूप देने वाला साबित हो सकता है। मतदाताओं की चुप्पी और उम्मीदवारों की सक्रियता के बीच इस चुनाव का परिणाम बेहद रोमांचक और अप्रत्याशित होने की संभावना है।

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