रोशनी पाण्डेय – प्रधान संपादक
दिनांक 01 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच द्वारा एससी/एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण और क्रीमीलेयर सिद्धांत को लागू करने का निर्णय लिया गया, जिसे लेकर एससी/एसटी और ओबीसी समाज में गहरा रोष है।
सामाजिक संगठनों और समाज के प्रतिनिधियों का मानना है कि यह निर्णय संविधान की मूल भावना और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के विचारों के खिलाफ है। इसे असंवैधानिक बताते हुए, समाज ने सरकार से तुरंत संसद में संशोधन विधेयक या अध्यादेश लाकर इस फैसले को निष्प्रभावी बनाने की मांग की है।
प्रमुख मांगों में शामिल हैं:
- एससी/एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण को रद्द करना।
- एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर सिद्धांत को समाप्त करना।
- सार्वजनिक क्षेत्र में खाली पड़े बेकलॉग पदों को भरने हेतु शीघ्र आदेश जारी करना।
- सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत सफाई कर्मचारियों का शीघ्र नियमितिकरण।
- लैटरल एंट्री के माध्यम से भरे जा रहे पदों पर तत्काल रोक लगाना।
- सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण की प्रक्रिया पर तत्काल रोक।
समाज के प्रतिनिधियों ने सरकार से अनुरोध किया है कि वे इन मांगों पर संवेदनशीलता से विचार करें और संविधान के अनुच्छेद 341-342 के तहत एससी/एसटी आरक्षण में किसी भी प्रकार के उपवर्गीकरण या संशोधन को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। साथ ही, एससी/एसटी एक्ट को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने की मांग भी की गई है ताकि इसे किसी भी प्रकार के कानूनी विवाद से बचाया जा सके।