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कुमाउंनी होली का ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व – प्रो. गिरीश चंद्र पंत

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कुमाउंनी होली का ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व – प्रो. गिरीश चंद्र पंत

रोशनी पांडेप्रधान संपादक

उत्तराखंडी लोकभाषाओं की चिनाण पछयाण के लिए समर्पित संस्था दुदबोली की पहल पर कुमाउंनी होली कार्यक्रम आयोजित किया गया।कार्यक्रम में बातचीत रखते हुए प्रो गिरीश चंद्र पंत ने कहा
कुमाउनी होली का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है। यह सर्दियों के अंत का और नए बुआई के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है।

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कुमाऊँ में यह बसंत पंचमी के दिन शुरू हो जाता है। हमारे होली के तीन प्रारूप हैं; बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली। इस होली में सिर्फ अबीर-गुलाल का टीका ही नहीं होता, वरन बैठकी होली और खड़ी होली गायन की शास्त्रीय परंपरा भी शामिल होती है। बसंत पंचमी के दिन से ही होल्यार प्रत्येक शाम घर-घर जाकर होली गाते हैं, और यह उत्सव लगभग २ महीनों तक चलता है।इस मौके पर शास्त्रीय बैठकी होली के वरिष्ठ होल्यार के सी त्रिपाठी और चित्रेश त्रिपाठी ने बैठकी होली गा उपस्थित समुदाय को भाव विभोर कर दिया।विशंभर दत्त पंत,गणेश पंत,निखिलेश उपाध्याय की टोली ने ए गे ग्यौनो में बालडी,होली ए गे, मेरु नानू नानू गोपाल मथुरा कसी रौलौ,कैले बांधी चीर हो रघुनंदन राजा समेत अनेकानेक खड़ी होली गा होली का रंगमय वातावरण तैयार कर दिया।इस मौके पर प्रो गिरीश चंद्र पंत, डा डी वें जोशी,निखिलेश उपाध्याय,नवेंदु मठपाल, के सी त्रिपाठी,गणेश पंत,सी पी खाती, नंदाबल्लभ पांडे,नवीन तिवारी, जे सी लोहनी,मंजू जोशी, बीना रावत,प्रभात ध्यानी,नवेंदु जोशी, जितेंद्र बिष्ट,गोपालदत्त रिखाड़ी,दिनेश जोशी,विशंभर दत्त पंत, शम्भुदत्त तिवारी,के डी कोठारी,राजाराम विद्यार्थी, चित्रेश त्रिपाठी मौजूद रहे।

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