जरा हटके नरेन्द्रनगर

वन गुर्जरो के सामने मंडराने लगा रोजी रोटी का संकट सरकार से लगा रहे मुआवजे की गुहार।

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रोशनी पाण्डेय – प्रधान सम्पादक

नरेन्द्रनगर विधानसभा के कुशरैला बीट में रह रहे वन गुर्जर समुदाय को इन दिनों गुलदार का भय सता रहा है। कुशरैला बीट के गुजराडा़, बखरोटी क्षेत्र में इन दिनों खाना बदोश गुर्जर समुदाय के अलग-अलग स्थानों पर लगभग 18 डेरे हैं । ये सभी गुर्जर समुदाय के लोग पिछली कई पीढ़ियों से यहां कच्चे घास फूस के डेरा बनाकर रह रहे हैं। गर्मी के दिनों भले ही ये भैंस/ बकरियों को लेकर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चले जाते हैं, मगर कुछ लोग कच्चे डेरों की रखवाली के लिए यहीं रहा करते हैं। भैंस/बकरी पालन से ही अपनी आजीविका व परिवार का भरणपोषण करने वाले इस क्षेत्र का गुर्जर समुदाय इन दिनों गुलदार की हरकतों से बेहद दहशत में है। बताते चलें कि कुशरैला के सेमल सूत में गुर्जर मोहम्मद रफी सहित तीन भाइयों का डेरा है, 2 दिन पहले बकरियों के डेरे पर गुलदार ने रात्रि में धावा बोल दिया, बकरियों की चीख-पुकार पर जागे मोहम्मद रफी और उसके भाई शोर करते हुए बकरियों के डेरे की तरफ भागे,तो उन्होंने बताया कि टॉर्च की रोशनी में 2 गुलदार डेरे से बाहर निकलते दिखे।

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गुलदार के हमले में बकरियां भी डेरे से बाहर तितर-बितर हो गई मोहम्मद रफ़ी और भाइयों ने डेरे में देखा कि गुलदार 4 बकरियों को मौके पर ही मौत के घाट उतार चुका था।और बकरियां भी गायब थी,जो दूसरे दिन भी नहीं मिली, इस तरह एक ही रात में 6 बकरियों का उन्हें नुकसान उठाना पड़ा,जबकि 4 बकरियों को गुलदार ने 1 हफ्ते पहले जंगल में ही निवाला बना डाला, और 15 दिनों के भीतर 10 बकरियों का नुकसान हो गया है। जंगलों के बीच घास फूस का टेंपरेरी डेरा बनाकर रहने वाले गुर्जर समुदाय भैंस/बकरी का पालन करके अपनी आजीविका चला कर परिवार का भरण- पोषण करते हैं।
*गुर्जरों की प्रमुख मांगों में जंगली जानवरों ( जैसे गुलदार, बाघ चीता,हाथी) द्वारा मारे गये पशुओं का शत प्रतिशत मुआवजा दिलाये जाने,कच्चे डेरों की जगह पक्के मकान बनाए जाने

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विद्युतीकरण किए जाने, 18 डेरों के मध्य में अस्पताल, प्राइमरी स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र खोले जाने,व पेयजल व्यवस्था किये जाने जैसी माँगें शामिल हैं। गुर्जर समुदाय का कहना है कि सरकार हमारी उक्त मांगों को हल कर दे,तो हमारे कठोर जीवन नयी सुबह के सूरज के उजाले जैसा प्रकाशमय हो जायेगा अब देखने की बात ये होगी कि सरकार इनकी मांगों पर कितना और कब ध्यान देती है।